सफला एकादशी: बुधवार को इस विधि से करें व्रत, ये है कथा व महत्व
पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 13 दिसंबर, बुधवार को है।
जीवन मंत्र डेस्क | Last Modified - Dec 11, 2017, 05:00 PM IST
पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 13 दिसंबर, बुधवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
सफला एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद माथे पर चंदन लगाकर कमल अथवा फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत व धूप-दीप से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा एवं आरती करें। भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों को बोलते हुए भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) रहें, शाम को दीपदान के बाद फलाहार कर सकते हैं।
रात को वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागते हैं। सफला एकादशी की रात जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है। द्वादशी (14 दिसंबर, गुरुवार) को भगवान की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के बाद ही स्वयं भोजन करें।
सफला एकादशी की कथा
चम्पावती नगर का राजा महिष्मत था। उसके पाँच पुत्र थे। महिष्मत का बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था। उसकी इस प्रकार की हरकतें देख महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा। एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा महिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया। फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा।
वह एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था। एक बार अंजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया। उसने पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा। सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया। एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा। दोपहर होने पर उसे होश आया। उठकर वह वन में गया और बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्य अस्त हो चुका था। तब उसने पीपल के वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा- इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों। ऐसा कहकर लुम्भक रातभर सोया नहीं।
इस प्रकार अनायास ही उसने सफला एकादशी व्रत का पालन कर लिया। उसी समय आकाशवाणी हुई- राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे। आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया। तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी। उसने पंद्रह वर्षों तक सफलतापूर्वक राज्य का संचालन किया। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया। अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया।
ये है सफला एकादशी का महत्व
सफला एकादशी के महत्व का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को बताया है। पद्मपुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि- बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना सफला एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है।
सफला एकादशी का व्रत अपने नाम के अनुसार सभी कामों में मनोवांछित सफलता प्रदान करता है। इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो भक्त सफला एकादशी का व्रत रखते हैं व रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता उससे कहीं बढ़कर फल की प्राप्ति होती है। ऐसा पुराणों में लिखा है।
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