रंगों से नहीं गोबर से खेलते हैं नागा साधु होली, नागाओं की ये रहस्यमयी बातें अधिकतर लोग नहीं जानते
जानिए नागा साधुओं से जुड़ी खास बातें
यूटिलिटी डेस्क | Last Modified - Feb 28, 2018, 05:00 PM IST
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नागा साधुओं की होली आम आदमी के तरीकों से बिलकुल अलग मनाई जाती है। संन्यासी जीवन में कुछ भी अनुपयोगी काम नहीं होता। अखाड़ों का मानना है कि संत समाज स्वस्थ्य परंपराओं की स्थापना करे। जूना अखाड़ा के महंत विजयगिरि महाराज के अनुसार शैव संप्रदाय के नागा साधुओं के लिए होली सबसे खास त्योहार होता है। उसी उत्साह से मनाते हैं जिससे आम आदमी मनाता है, लेकिन उनका तरीका सबसे अलग होता है।
अखाड़े में जमा होते है नागा साधु
नागा साधुओं की होली रंग-गुलाल से नहीं, गाय के गोबर से खेली जाती है। गाय के गोबर में कई तरह की औषधियां मिलाकर घोल तैयार किया जाता है, जिससे साधु एक-दूसरे को भिगोते हैं। इसकी तैयारी एक-दो दिन पहले से शुरू होती है। अखाड़ों में संतों का डेरा जमने लगता है। आसपास के साधु जमा होते हैं। भंडारा होता है।
होली पर गुरु से लेते हैं आशीर्वाद
होली की सुबह सबसे पहले अपने नित्य कर्म और पूजा होती है। भस्म रमाई जाती है। इसके बाद नागा साधु अपने अपने गुरुओं से आशीर्वाद लेते हैं। फिर शुरू होता है होली का हुड़दंग। लेकिन ये हुड़दंग भी आम लोगों से काफी अलग होता है। लोग फिल्मी गानों पर थिरकते हैं, लेकिन नागा साधु शिव तांडव जैसे स्तोत्रों को गाते हुए होली मनाते हैं।
ऐसे होते हैं नियम
- यूं तो नागा साधु आम तौर पर लंगोट या कोई केसरिया कपड़े लपेटकर रहते हैं लेकिन होली के त्योहार में उन्हें अपने मूल स्वरुप में यानी नागा ही रहना होता है। बकायदा अपना पूरा श्रंगार करते हैं, जैसे भस्म रमाना, हार और फूलों से खुद को सजाना।
- अन्य साधुओं के साथ पूरे सम्मान के साथ होली खेली जाती है। होली की हुड़दंग में भी संतों के पद और गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाता है।
- आमतौर पर नागा साधु अपनी होली से आम लोगों को दूर ही रखते हैं, लेकिन अपने अनुयायियों को वे कई बार होली में शामिल कर लेते हैं। अनुयायियों को भी साधुओं की परंपरा के अनुसार ही होली खेलना होती है।
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ऐसे तैयार होता है गाय के गोबर का घोल
- होली के लिए देसी गाय के गोबर को इकट्ठा किया जाता है। इसके लिए आश्रम की गो-शाला या किसी भरोसेमंद गो-शाला से ही गायों का गोबर लाया जाता है।
- गोबर को एक ड्रम में रखा जाता है। इसमें गुलाब जल, गंगा जल मिलाकर घोलते हैं। इसके बाद इसमें केसर, चंदन और कस्तूरी जैसी औषधियां मिलाई जाती हैं।
- इस तरह होली खेलने के लिए गाय के गोबर का घोल तैयार किया जाता है।
हेल्थ के लिए अच्छा होता है इस घोल से होली खेलना
- इस घोल से होली खेलना स्कीन के लिए काफी लाभदायक होता है। सर्दी के मौसम में भी नागा साधु शरीर पर भस्म लगाकर रहते हैं। इस कारण एकदम गर्मी के लिए शरीर को तैयार करना होता है।
- गाय का गोबर स्कीन की बीमारियों के लिए काफी अच्छा माना जाता है। इसमें गुलाब जल और केसर मिलाया जाता है जो स्कीन को मुलायम करता है, क्योंकि भस्म लगाने से स्कीन लगातार सख्त होती जाती है। कस्तूरी से स्कीन गर्म होती है और उससे महक आती है।
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बहुत कठिन है नागा साधु बनना
- जूना अखाड़ा के महंत विजयगिरि महाराज के अनुसार लोग समझते हैं कि नागा साधु बनना बहुत आसान है, मगर साधु, संन्यासी बनने की राह बहुत मुश्किल होती है। नागा साधु बनने की एक पूरी प्रक्रिया है, जिसमें अलग-अलग चरण होते हैं। नागा बनने वाले को कठोर नियम-कायदों का पालन करना पड़ता है।
- जो व्यक्ति नागा साधु बनना चाहता है उसके अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचार्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से 12 साल तक लग सकते है। जब अखाड़े को और उसके गुरु को ये लगता है कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
- नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले अपने बाल कटवाने पड़ते है फिर गंगा में 108 डुबकी लगाते हैं और उसके पांच गुरू बनाए जाते है।इसके बाद खुद को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म पूरा करना होता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते है।
गुरु मंत्र पर आधारित होती है दीक्षा
- दीक्षा के लायक होने के बाद साधुओं को एक गुरु मंत्र दिया जाता है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
- नागा साधु बनने के बाद वस्त्रों का त्याग करना पडता है। वस्त्र पहनना ही है तो भगवा रंग का सिर्फ एक वस्त्र शरीर पर डाल सकते है।
- अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते है। ये साधु खाट, पलंग या गद्दी पर नही सो सकते हैं, ये केवल जमीन पर सोते है।
आम लोगों से रहना पड़ता है अलग
- नागा साधु हमेशा आम लोगों से अलग रहते हैं।
- नागा साधु दिन में सिर्फ एक ही समय भिक्षा मांगकर भोजन करते है।
- नागा साधुओं को सुबह स्नान के बाद सबसे पहले शरीर पर भस्म लगानी होती है और रूद्राक्ष धारण करना पड़ता है।
(News in Hindi from Dainik Bhaskar)